कविता : नारी

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शिक्षामे अब बन रहल महान 

समाजमे होरहल नारीके सम्मान।

शिक्षापर अगर नहोईत विश्वास 

नहोइत नारी के   विकास।।१।।


  बहुत हो रहल जुल्म ओकरापर

  आउर बहुत होरहल आघात।

  अब काहेला शहत नारी अत्याचार 

  कईला दबाइत मनके बात।।२।।


याद कर ई नारी के

अब दबावे परत इच्छाशक्ति ।

निकलजा आँचल से बाहर 

बनजा देशके मूर्ति।।३।।


 नकर सकती देशके उद्धार 

 होईत रहती शोषण के शिकार।

न हो सकती दहलिज के पार 

 नमिलईत नारीके अधिकार।।४।।


अब नारी के बारी हए

बहुत होगेल त्याग। 

जोन करत नारी के दमन 

सब दिनके लेल होजाएत दफन।।५।।


लेखक :राम विश्वास कुशवाहा

ठेगाना :हरिवन -३,सर्लाही

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